नईदिल्ली(ए)। केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘भारत संघ के सशस्त्र बल’ हैं, जब दिल्ली हाईकोर्ट ने इसी आधार पर इन बलों को पुरानी पेंशन देने का फैसला दिया तो सरकार उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चली गई। वित्त मंत्रालय के 2008 में जारी एक कार्यालय ज्ञापन ‘ओएम’ में कहा गया था कि जिन कर्मियों का 48 सौ रुपये का ‘ग्रेड पे’ है और वे उसमें चार साल की सेवा कर चुके हैं तो उनका ‘ग्रेड पे’ 54 सौ रुपये हो जाएगा। यह बात केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में स्वत: ही लागू नहीं होती। इसे लागू कराने के लिए अदालतों का सहारा लेना पड़ता है। गत वर्ष आईटीबीपी के इंस्पेक्टर सुशील कुमार ने दिल्ली कोर्ट से यह लड़ाई जीती थी, इसके बाद बीएसएफ के लगभग सवा सौ इंस्पेक्टरों ने अदालत से अपने हक में आदेश जारी कराया। दिल्ली हाईकोर्ट ने इन इंस्पेक्टरों को 54 सौ रुपये वाला ‘ग्रेड पे’ देने का आदेश दिया है, मगर सरकार सुप्रीम कोर्ट में चली गई। वहां पर एसएलपी खारिज हो गई। इसके बाद भी न्याय नहीं मिला। बीएसएफ इंस्पेक्टरों ने दिल्ली हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, बीएसएफ के 129 इंस्पेक्टरों को 24 सितंबर से पहले 5400 का ‘ग्रेड पे’ नहीं मिला तो संबंधित अफसर दिल्ली हाईकोर्ट में मौजूद रहें। दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस अनीश दयाल ने गत 16 मई का यह आदेश दिया था। बीएसएफ के इंस्पेक्टर आनंद प्रताप सिंह व अन्य ने दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष अवमानना याचिका दायर की थी। इसमें गोविंद मोहन और अन्य को पार्टी बनाया गया था। सबसे पहले इस मामले में आईटीबीपी के इंस्पेक्टर सुशील कुमार ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। गत वर्ष लंबे संघर्ष के बाद उनकी जीत हुई। अदालत ने उन्हें 54 सौ ग्रे पे देने का फैसला सुनाया। उसके बाद बीएसएफ के इंस्पेक्टर भी अदालत में पहुंच गए। इतना ही नहीं, सीआरपीएफ के इंस्पेक्टर भी अदालत में जाने की तैयारी करने लगे। खास बात है कि आईटीबीपी के इंस्पेक्टर सुशील कुमार को इस केस में यूं ही जीत नहीं मिली थी। सुशील कुमार के केस में सरकार, सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी में चली गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 17 अप्रैल 2025 को एसएलपी, खारिज कर दी। यानी सुशील कुमार का केस कन्फर्म हो गया। डीजी बीएसएफ ने 14 मई को केंद्रीय गृह मंत्रालय के साथ संचार किया। इसमें कहा गया कि सुशील कुमार के केस के दिल्ली हाईकोर्ट ने 9 सितंबर 2024 को फैसला सुनाया था। उसे सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी 13406/2025 के जरिए चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने 17 अप्रैल के अपने फैसले में एसएलपी को खारिज कर दिया। इस मामले में बीएसएफ के लीगल अफसरों की राय ली गई है। उन्होंने अपनी राय में कहा है कि अब दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश लागू किया जाना जरुरी है। अब कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है। ऐसी स्थिति में एनएफयू का जो केस है यानी बीएसएफ इंस्पेक्टर आनन्द प्रताप सिंह का, उसे 54 सौ का ‘ग्रेड पे’ दे दिया जाए। डीजी ने इस संबंध में एमएचए से उचित दिशा निर्देश जारी करने की प्रार्थना की। इस बाबत रेस्पोंडेंट यानी एमएचए की तरफ से कहा गया कि इस पिटीशन में कुल 129 लोग (इंस्पेक्टर) हैं, सभी के लिए यह फैसला लागू करने का अनुरोध किया है। सरकार के वकील द्वारा कहा गया कि बीएसएफ के इंस्पेक्टर आनंद प्रताप सिंह के मामले में उक्त आदेश लागू हो गया है। अब 129 को भी उक्त फायदा दिया जाए। हालांकि सरकारी वकील यह नहीं बता पा रहे कि कितने समय के भीतर यह फैसला लागू होगा। कोर्ट ने कहा कि मंत्रालय को फैसला लागू करने के लिए, अनंतकाल का समय नहीं दिया जा सकता। कोर्ट इसके लिए अनंतकाल तक इंतजार नहीं कर सकती है। दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस अनीश दयाल ने अपने फैसले में कहा, 24 सितंबर 2025 को यह केस लिस्ट किया जाए। यह देखेंगे कि तब तक ये फैसला लागू हुआ है या नहीं। अगर इस तय अवधि में ये फैसला लागू नहीं होता है तो संबंधित अफसर कोर्ट में मौजूद रहें।बता दें कि बीएसएफ के इंस्पेक्टर आनंद प्रताप सिंह व अन्य ने दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष याचिका लगाई थी कि उन्हें 48 सौ रुपये के ‘ग्रेड पे’ में काम करते हुए चार साल से अधिक समय हो गया है, लेकिन सरकार उन्हें 54 सौ रुपये का वेतनमान नहीं दे रही। यह वेतनमान सहायक कमांडेंट का होता है। इंस्पेक्टर के बाद अगली पदोन्नति बतौर ‘सहायक कमांडेंट’ होती है। पदोन्नति तो तभी मिलती है, जब पद खाली हों। इसमें तो दस पंद्रह साल तक लग जाते हैं। तब तक इंस्पेक्टरों को सहायक कमांडेंट का ग्रेड पे देने का प्रावधान है, ताकि इन्हें आर्थिक नुकसान न हो। बीएसएफ इंस्पेक्टरों के मामले में विभाग ने बाधा खड़ी करने का प्रयास किया, मगर दिल्ली हाईकोर्ट ने कोई बात नहीं सुनी। यह तर्क दिया गया कि इंस्पेक्टरों को ‘मॉडिफाइड एश्योर्ड करियर प्रोग्रेसन’ (एमएसीपी) में यह ग्रेड मिला है। इस मामले को एमएसीपी में फंसाने की कोशिश हुई। वरिष्ठ अधिवक्ता अंकुर छिब्बर ने दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष गत वर्ष दिए गए फैसले का हवाला दिया।
दिल्ली हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई करने वाले जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शैलैंद्र कौर ने कहा था, ये एमएसीपी का केस ही नहीं है। इंस्पेक्टरों को चार वर्ष से 48 सौ का ‘ग्रेड पे’ मिल रहा है तो वे 54 सौ के ग्रेड पे में आने के अधिकारी हैं। गत वर्ष दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस रेखा पल्ली और जस्टिस शैलेंद्र कौर ने 9 सितंबर को यह फैसला सुनाया था। आईटीबीपी के इंस्पेक्टर सुशील कुमार की दलील थी कि केंद्र सरकार ने ग्रुप बी के सभी कर्मियों को यह फायदा दिया है, मगर इसमें केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को छोड़ दिया गया। मामले की सुनवाई के बाद सुशील कुमार की जीत हुई। अदालत ने उन्हें 54 सौ ग्रे पे देने का फैसला सुनाया।बीएसएफ के इंस्पेक्टर आनंद प्रताप सिंह व अन्य ने याचिका लगा दी। इस मामले में सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों का हवाला भी दिया गया। बीएसएफ के इंस्पेक्टरों ने विभाग से आग्रह किया कि जब कोर्ट ने सुशील कुमार के केस में यह फैसला दिया है तो उन्हें भी उक्त लाभ दिया जाए। विभाग की तरफ से कहा गया कि अभी इस संबंध में गृह मंत्रालय से आदेश नहीं आया है। विभाग द्वारा जब इस मामले को गोलमोल करने का प्रयास हुआ तो बीएसएफ इंस्पेक्टरों ने दिल्ली हाईकोर्ट की शरण ली। बीएसएफ इंस्पेक्टरों के केस में हाईकोर्ट ने कहा, अगर सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर ‘स्टे’ नहीं हुआ तो यह आदेश लागू किया जाए। सर्वोच्च अदालत से इस बाबत कोई उल्ट आदेश आता है तो वह याचिकाकर्ताओं के पक्ष में हुए दिल्ली हाईकोर्ट के निर्देश को प्रभावित करेगा।