नई दिल्ली(ए)। कभी मानवता पर अभिशाप बनी पोलियो जैसी बीमारी अब इतिहास के पन्नों में समाने को है। चिकित्सा विज्ञान, वैश्विक सहयोग और सामुदायिक जागरूकता की बदौलत आज पूरी दुनिया पोलियो-मुक्त भविष्य के एक कदम और करीब पहुंच चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, अब केवल दो देश अफगानिस्तान और पाकिस्तान में जंगली पोलियो वायरस के मामले बचे हैं। यह उपलब्धि न सिर्फ विज्ञान की बल्कि मानवता की भी विजय है। द लैंसेट में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार पिछले 50 वर्षों में टीकाकरण अभियानों ने 15.4 करोड़ लोगों की जान बचाई है। यानी हर मिनट छह जीवन। इनमें से 2 करोड़ से अधिक बच्चे पोलियो से लकवाग्रस्त होने से बचे। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि पोलियो समेत 14 अन्य बीमारियों के टीकों ने वैश्विक शिशु मृत्यु दर में 40 प्रतिशत से अधिक कमी लाई है। सदी के मध्य में जब पोलियो महामारी की तरह फैल रहा था, तब अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. जोनास साल्क ने पहली प्रभावी पोलियो वैक्सीन विकसित की। बाद में डॉ. अल्बर्ट सबिन ने ओरल पोलियो वैक्सीन (ओपीवी) तैयार की, जिसने वैश्विक स्तर पर इस अभियान को और सरल बना दिया। भारत के पोलियो-मुक्त सफर, दो बूंदों से इतिहास की धारा बह निकली। भारत में कभी पोलियो महामारी का रूप ले चुका था। पर 1995 में शुरू हुए पल्स पोलियो अभियान ने देश के स्वास्थ्य इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया।
दो-तीन साल में बंद हो सकता है निगरानी नेटवर्क
11 साल पहले पोलियो से मुक्ति पाने के बाद भारत में जल्द ही निगरानी नेटवर्क बंद हो सकता है। केंद्र सरकार आगामी दो से तीन साल में राष्ट्रीय पोलियो निगरानी नेटवर्क को बंद करने की योजना बना रही है जिसे लेकर डॉक्टरों ने चिंता जताई है। 1990 में विश्व स्वास्थ्य संगठन और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मिलकर पोलियो की निगरानी के लिए राष्ट्रव्यापी नेटवर्क स्थापित किया जिसमें 280 से केंद्र संचालित हो रहे हैं। यहां से तीव्र फ्लेसिड पैरालिसिस (एएफपी) की रिपोर्टिंग के जरिए पोलियो वायरस पर निगरानी रखी जा रही है। अब सरकार की योजना अगले साल 2026 में इन इकाइयों को 280 से घटाकर 190 करने का है और 2027 तक इसे 140 इकाइयों तक सीमित किया जाना है। इसके साथ-साथ फंडिंग भी हर चरण में कम होगी।
सतर्कता अब भी जरूरी
विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक दुनिया का एक भी बच्चा पोलियो वायरस से संक्रमित है, तब तक खतरा खत्म नहीं हुआ। किसी भी देश में वायरस की वापसी का मतलब होगा कि यह बीमारी फिर से फैल सकती है। इसलिए निरंतर टीकाकरण, निगरानी और जागरूकता बेहद जरूरी है। अब लक्ष्य सिर्फ पोलियो-मुक्त नहीं बल्कि पोलियो-रहित ग्रह का है। 2025 के अंत तक डब्ल्यूएचओ और उसकी सहयोगी संस्थाओं का लक्ष्य है कि पोलियो वायरस का जंगली रूप पूरी तरह समाप्त कर दिया जाए।