नई दिल्ली(ए)। बिहार की राजनीति में चिराग पासवान धूमकेतु की तरह उभरे हैं। देश के प्रमुख दलित नेताओं में शुमार रहे रामविलास पासवान के पुत्र चिराग ने कॅरिअर की शुरुआत फिल्मों से की। वहां सफलता नहीं मिली, तो सियासत में कदम रखा, जहां एंट्री धमाकेदार रही और इन नतीजों ने उन्हें हिट साबित कर दिया। दलित राजनीति के मौजूदा हालात की बात करें, तो जहां बसपा सुप्रीमो मायावती और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा प्रमुख जीतनराम मांझी जैसे नेता गिरती लोकप्रियता से जूझ रहे हैं, चिराग का उभार असाधारण रहा है। उनका बिहारी फर्स्ट का नारा काम कर गया।
एनडीए का भरोसा सही साबित किया
चिराग की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को एनडीए ने जब 29 सीटें दी थीं, तो कुछ को यह नागवार गुजरा। पर चिराग ने साबित कर दिया कि भाजपा नेतृत्व का उन पर भरोसा सही था। दिवंगत पिता की विरासत की लड़ाई में एक समय अपने चाचा पशुपति पारस से मात खाने वाले चिराग ने संयम दिखाते हुए महज पांच साल में पूरा खेल पलट दिया। उन्होंने खुद को रामविलास पासवान का असली वारिस तो साबित किया ही, कुछ मायनों में उनसे आगे निकल गए।